भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रामकहानी / संध्या पेडणेकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: रामकहानी / संध्या पेडण॓कर <poem> इसकी, उसकी, तेरी, मेरी सबकी एक सी राम…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=संध्या पेडणेकर | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
इसकी, उसकी, तेरी, मेरी | इसकी, उसकी, तेरी, मेरी |
20:14, 1 मार्च 2010 का अवतरण
इसकी, उसकी, तेरी, मेरी
सबकी एक सी राम कहानी
आओ कुछ नया करें
खुद अपने निर्णय लें
और खुद अपनी राहें ढूंढें
हीरों को कराएं छुटपन से
राह की पहचान
नैनों को दे सामनेवाले को
चीर कर आर पार देखने की ताकत
दो गिलास दूध मुन्ने को
तो दो गिलास दूध मुन्नी को भी
नया बस्ता राजू को
तो नया बस्ता रानी को भी
नयी रहे टटोलने की आजादी
दोनों को दें
दोनों की आँखों के सपनों को
रंग दें
लेकिन यह सब करने से पहले
समय पर शाम का खाना बना दें
संघर्ष की शुरुआत वर्ना यहीं से होगी
नई यह कहानी भी फिर
शाम के खाने पर कुर्बान हो जाएगी!