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<poem>
अपना है तो
जायज जायज़ है
कभी स्वाभिमान है,
कभी
सकारात्मक
जिसका पोषण करना
जरूरी ज़रूरी है
किसी और का हो
तो
गैरजरूरी ग़ैरज़रूरी है,नाजायज नाजायज़ है
बेमतलब है
अकारण है
इसलिए
एन येन-केन -प्रकारेण अपनी इज्जत इज़्ज़त गिरवी रखकर ही सही
उसे कुचलना चाहिए
कहीं उसका अहंकार
अपने अहंकार कस के आगे
भारी पड़ा तो?
दिखावटी टुच्ची लडाई लड़ाई
सच ने जीत ली तो?
नाक कट जायेगीजाएगी,स्वाभिमान मिट जायेगाजाएगा
इसलिए
नाजायज नाजायज़ अहंकार को कुचलने के लिए जायज जायज़ अहंकार को बिच बिछ जाना होगा
बेआबरू का सैलाब बह जाने देना होगा
उसके अहंकार को
कुचलना होगा
दफनाना दफ़नाना होग
</poem>
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