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अपनी ही / चंद्र रेखा ढडवाल
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01:59, 17 जुलाई 2010
<poem>
अपनी
ही
लाज में सिमटती
अपनी खींची
लकीरों में घिरती
अपने ही पानी में बूँद-बूँद पिघलती बर्फ़
औरत
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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