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"बाज़ीगिरी / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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09:46, 7 मार्च 2010 का अवतरण
कुछ भी कह कर
कुछ भी करके
पल दो पल में
हँस पड़ना निश्चिंत
भाता था मुझे बहुत
कहूँ ! कैसा लगता है
अब वह उपक्रम तुम्हारा
बेसन में लिपटी
मछली को
उबलते तेल में छोड़
बीड़ी पीने तलैया का-सा
बेसन के भीतेर छिपी
मछली के साथ
कब सिकुड़ता
कब फटता है वह.