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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>इस उमर में दोस्तो, शैतान बहकाने लगाजब रहे न नोश के काबिल, मज़ा आने लगा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जिस ज़माने ने किये सजदे,हमारे नाम परआज हम पर वो ज़माना, कहर है ढाने लगा
इस उमर जब दफ़न माज़ी को करने की करें हम कोशिशेंज़हन में दोस्तो, शैतान बहकाने लगा<br>जब रहे न नोश के काबिल, मज़ा उतना उभर कर सामने आने लगा<br><br>
जिस ज़माने ने किये सजदे,हमारे नाम पर<br>ज़िन्दगी भर जिन की ख़ातिर हम गुनाह ढोते रहेआज हम पर वो ज़मानाउनकी ख़ुर्दगज़ी पे दिल, कहर अब तरस है ढाने खाने लगा<br><br>
जब दफ़न माज़ी को करने की करें हम कोशिशें<br>ज़हन चार सू जिनको कभी राहों में उतना उभर कर सामने आने ठुकराते रहेराह का हर एक पत्थर हमको ठुकराने लगा<br><br>
ज़िन्दगी भर जिन की ख़ातिर हम गुनाह ढोते रहे<br>ज़िन्गी के तौर ही बेतौर जब होने लगेउनकी ख़ुर्दगज़ी पे दिलतब हमें हर तौर दोबारा, अब तरस है खाने लगा<br><br>समझ आने लगे
चार सू जिनको कभी राहों में ठुकराते रहे<br>राह का हर एक पत्थर हमको ठुकराने लगा<br><br> ज़िन्गी के तौर ही बेतौर जब होने लगे<br>तब हमें हर तौर दोबारा, समझ आने लगे<br><br> ‘तेज’ चक्कर वक्त का यूं ही रवां रहता सदा<br>कल का वीराना यहां, गुलशन है बन जाने लगा<br><br/poem>
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