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नहीं बनना मुझे ऐसी नदी<br />
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'प्रकाश के घेरे में घर' चाहिए<br />
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|रचनाकार=लाल्टू
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शब्‍द जीवन से बड़ा है यह<br />
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फिर भी जीवन ही कविता होगी<br />
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मेरी.<br />
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उनकी ओर होगी पीठ
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फिर भी जीवन ही कविता होगी
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मेरी।
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01:22, 27 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

नहीं बनना मुझे ऐसी नदी
जिसे पिघलती मोम के
'प्रकाश के घेरे में घर' चाहिए

शब्‍द जीवन से बड़ा है यह
गलतफहमी जिनको हो
उनकी ओर होगी पीठ

रहूँ भले ही धूलि-सा
फिर भी जीवन ही कविता होगी
मेरी।