भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिमाद्रि तुंग शृंग से / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती | हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती | ||
− | + | स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती | |
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो, | 'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो, | ||
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!' | प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!' |
13:47, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!