भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पंजाब केसरी / श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("पंजाब केसरी / श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:58, 28 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
दुखियों के सहारे दीन देश के दुलारे प्यारे,
लाजपत राय लाज-पत लै चले गए।
मजि गए हौंसले हमारे सारे ही आज,
हाय हम दैव दुर्दण्ड से दले गए।
होंगे जलाए नए घी के चिराग आज,
शैल शिमला में यों मनोरथ मले गए।
झेल के पुलिस की वार खेल के अनोखे खेल,
वीर पंजाब दुख शैल ले चले गए।
डण्डों की मार खाके वीर परलोक गया,
लोक लाज रख ली परलोक लाज जाने दी।
उफ़ भी निकाली नहीं मुँह से, कष्ट मार-मार,
मन ही मन आँसुओं की झड़ी लग जाने दी।
देख नपुंसकता स्वदेश की हज़ार बार,
बल खाके भी न बल-रेखा एकाने दी।
जाने दी न आन-बान-शान तिल-भर भी उसकी,
जानबूझ करके अपनी जान चली जाने दी।
रचनाकाल : स्वातन्त्र्य पूर्व