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नहान / सुमित्रानंदन पंत
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09:14, 4 मई 2010
ये शत, सहस्र नर नारी जन
लगते
प्रहॄष्ट
प्रहृष्ट
सब, मुक्त, प्रमन,
हैं आज न नित्य कर्म बंधन!
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