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"नींद से लम्‍बी रात / नवीन सागर" के अवतरणों में अंतर

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12:53, 2 मई 2010 का अवतरण

दीवारें सिर्फ छप्‍पर साधने के लिए थीं
जगह-जगह दरवाजे हमारे
खुले हुए थे
खिड़कियॉं थीं
बारजे थे ऑंगन थे और छतें
सड़कों पर हम अक्‍सर मिल जाते थे.

सुनने और कहने के लिए जो शब्‍द थे
उनमें अजन्‍मे शब्‍दों की बड़ी गूंज थी
दूर-दूर की आवाजें
हमारे पास प्रतिध्‍वनि की तरह आती थीं
हम खोए हुए अक्‍सर अपने आर-पार जाते-जाते थे.

हमारी मृत्‍यु होती थी
जन्‍मों से भरे इस संसार में हम
बार-बार जन्‍म लेते थे.
हम खुले में लेट जाते थे तारे देखते थे
धूल पर उंगलियों से लकीरें खींचते थे
नाम लिखते थे

धरती जहां से पेड़ बनकर आना चाहती थी
वहॉं से हट जाते थे
और चिडियों के भीतर से गाते थे.

अब एक पुरानी बस्‍ती
खस्‍ताहाल मकान गलियों के मुहाने
भारी सदमे के झटपुटे में ढह रहे हैं

हम एक गली में हैं लावारिस
चील कौबे धसकती मुंडेरों पर बैठे हैं
गर्दनें टेढ़ी किए.

एक टूटी हुई खिड़की
हवा में झुल रही है
तारों की अवाक दूरियॉं बुझने-बुझने को हैं.