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<Poem>
आधी रात के वक्‍त वक़्त अपने शहर का रास्‍ता
पराए शहर में भूला
बड़ी भरी बड़ा भारी शहर और भारी सन्‍नाटाकोई वहां वहाँ परिचित नहींपरिचित सिर्फ सिर्फ़ आसमानजिसमें तारे नहीं जराज़रा-सा चॉंदपरिचित सिर्फ सिर्फ़ पेड़चिडियों की नींद में ऊंघते ऊँघते हुएपरिचित सिर्फ सिर्फ़ हवारूकी रुकी हुई दीवारों के बीच उदासीन
परिचित सिर्फ सिर्फ़ भिखारी
आसमान से गिरे हुए चीथड़ों से
जहॉंजहाँ-तहॉं तहाँ पड़े हुएपरिचित सिर्फ सिर्फ़ अस्‍पताल कत्‍लगाह क़त्‍लगाह हमारेपरिचित सिर्फ सिर्फ़ स्‍टेशनआती-जाती गाडियों गाड़ियों के मेले में अकेला
छूटा हुआ रोशन
परिचित सिर्फ परछाइयॉंसिर्फ़ परछाइयाँ:चीजों चीज़ों के अंधेरे अँधेरे का रंगपरिचित सिर्फ दरवाजे सिर्फ़ दरवाज़े बंद और मजबूत.मज़बूत।
इनमें से किसी से पूछता रास्‍ता
कि अकस्‍मात एक चीखचीख़बहुत परिचित जहॉं जहाँ जिस तरफ तरफ़ सेउस तरफ तरफ़ को दिखा रास्‍ता
कि तभी
मजबूत मज़बूत टायरों वाला ट्रक मिला
जो रास्‍ते पर था
ट्रक ड्राइवर गाता हुआ चला रहा था
मैं ऊंघता ऊँघता हुआ अपने शहर पहुंचा.पहुँचा।</poem>
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