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चूहे / नवीन सागर

17 bytes added, 13:50, 6 मई 2010
तो धरती पर
किसी के लिए जगह न होगी
ओ बिल्‍ली! तूने उसे मुंह मुँह में दबाया
तेरा भोजन! तू जा!!
पर वे क्‍या खाएं खाएँ अगरउनके खाने पर आदमी का कब्‍जा कब्‍ज़ा है
उन्‍हें घेर-पकड़कर मारने वालों को नहीं पता
कि अगर उनके दिमाग दिमाग़ में आ जाए
तो वे सब को कुतर डालें
बिलों में खींच ले जाएंजाएँ
भगवान ने इसलिए उन्‍हें दिमाग नहीं दिया
ताकि प्राणियों में उसका श्रेष्‍ठ प्राणी
यह मनुष्‍य बचा रहे
भगवान
अपनी हर चीज चीज़ की कीमत पर जिसे
बचा रहा है
उससे बच, चूहे!
</poem>
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