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"पतंग और चरखड़ी (कविता) / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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पतंग और चरखड़ी
 
पतंग और चरखड़ी

16:45, 16 मई 2010 का अवतरण

साँचा:रचनाकार : मुकेश मानस साँचा:कविता संग्रह : पतंग और चरखड़ी

पतंग और चरखड़ी



1
वो पतंग लाया
वो लाया चरखड़ी

चरखड़ी मुझे थमाई
उसने पतंग उड़ाई

उसने हमेशा पतंग उड़ाई
मैंने बस चरखड़ी हिलाई
1985

2
बच्चों के पास पतंग थी
तो चरखड़ी नहीं थी

बच्चों के पास चरखड़ी थी
तो पतंग नहीं थी

पतंग और चरखड़ी
एक साथ पाने का सपना
बच्चों के पास हमेशा था
1996


3
बच्चे हैं बहुत
पतंगें हैं कम
चरखड़ियां तो और भी कम
चरखड़ियों में धगा
बहुत-बहुत कम

कहां गई पतंगें?
कहां गई चरखड़ियां?
कहां गया धागा?
1997


4
जिनके पास चरखड़ी होती है
वे पतंग उड़ाना सीख ही जाते हैं

जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वे शायद ही पतंग उड़ा पाते हैं

जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वो खुद चरखड़ी बन जाते हैं
और कवि की कविता में
पतंग उड़ाते हैं।
1999मोटा पाठ