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"गंध-परिसर / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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और पुराण-पात्रों में रस सहेजकर | और पुराण-पात्रों में रस सहेजकर | ||
ज्ञानेन्द्रियाँ तुष्ट करती है. | ज्ञानेन्द्रियाँ तुष्ट करती है. | ||
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15:26, 7 जून 2010 के समय का अवतरण
यह जो गंध है
समय की तितली है
जो त्रिकाल मार्गों से उड़ती हुई
युग-पौधों पर खिले
अनगिनत शताब्दी-पुष्पों से
मीठी-कड़वी घटनाओं का
रस चूसती हुई
इतिहास-उपवन में
असीम जीवन को गुलजार करती है
और पुराण-पात्रों में रस सहेजकर
ज्ञानेन्द्रियाँ तुष्ट करती है.