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हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'
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13:54, 9 जून 2010
घिर गया है
वैशैली
विषैली
लताओं से जीवन वृक्ष
बुझते हुए पल भर को सही लड़ी थी लौ भी
मैं नहीं हूँ मैं, तुम भी कहाँ तुम सब मुखौटॆ है
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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