"अपने गाँव में / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem>) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | '''अपने गाँव में''' | ||
+ | |||
+ | दगरा अभी तक | ||
+ | सड़क नहीं बन पाया | ||
+ | कड़की में पहले भीकू | ||
+ | दिन गुजारता था | ||
+ | अब उसका लड़का | ||
+ | |||
+ | पथ के पथवारी का मन्दिर | ||
+ | टूटा पड़ा है | ||
+ | पास की तलैया का जल | ||
+ | सूख गया | ||
+ | और कुआँ | ||
+ | जिसका जल चढ़ता था मूर्ति पर | ||
+ | बच्चों की रेवड़ के साथ | ||
+ | हुंआ हुंआ करता है | ||
+ | मेरा तो घर नहीं ही रहा | ||
+ | पिछवाड़े का कुम्हार भी | ||
+ | चिलम और गागर बनाने का | ||
+ | काम छोड़ | ||
+ | अपने गधों के संग | ||
+ | शहर ओर चला गया | ||
+ | |||
+ | सोना | ||
+ | जो बचपन में मेरे साथ | ||
+ | आँख मिचौनी खेलती थी | ||
+ | अब लुट-पिट कर | ||
+ | फिर यहीं पीहर में रहती है | ||
+ | सुना है | ||
+ | दवा-दारु के अभाव में | ||
+ | उसका पिया | ||
+ | राम-प्यारा हो गया | ||
+ | |||
+ | यहाँ इस बगिया में | ||
+ | पहले एक पाठशाला थी | ||
+ | जमींदार की | ||
+ | जिसमें मैं पढ़ा था | ||
+ | जमींदारी टूटने के बाद | ||
+ | उसने इसे बेच दिया | ||
+ | अब इसमें लाला की गाय-भैंस | ||
+ | बंधती है | ||
+ | और पाठशाला | ||
+ | दूर | ||
+ | उस पीपल तले लगती है | ||
+ | बनिए की दुकान में | ||
+ | पहले एक ओर डाकखाना था | ||
+ | वह भी तो कब का टूट गया | ||
+ | गाँव में आयी दुल्हन | ||
+ | पीहर को पाती | ||
+ | नहीं भेज पाती | ||
+ | |||
+ | नयी दिल्ली | ||
+ | इस साल चाँदी से तुलेगी | ||
+ | और मेरे गाँव के सवाल | ||
+ | एक बड़े वायदे के साथ | ||
+ | शायद मुसकरा कर | ||
+ | फिर टाल देगी |
18:54, 24 जून 2010 के समय का अवतरण
अपने गाँव में
दगरा अभी तक
सड़क नहीं बन पाया
कड़की में पहले भीकू
दिन गुजारता था
अब उसका लड़का
पथ के पथवारी का मन्दिर
टूटा पड़ा है
पास की तलैया का जल
सूख गया
और कुआँ
जिसका जल चढ़ता था मूर्ति पर
बच्चों की रेवड़ के साथ
हुंआ हुंआ करता है
मेरा तो घर नहीं ही रहा
पिछवाड़े का कुम्हार भी
चिलम और गागर बनाने का
काम छोड़
अपने गधों के संग
शहर ओर चला गया
सोना
जो बचपन में मेरे साथ
आँख मिचौनी खेलती थी
अब लुट-पिट कर
फिर यहीं पीहर में रहती है
सुना है
दवा-दारु के अभाव में
उसका पिया
राम-प्यारा हो गया
यहाँ इस बगिया में
पहले एक पाठशाला थी
जमींदार की
जिसमें मैं पढ़ा था
जमींदारी टूटने के बाद
उसने इसे बेच दिया
अब इसमें लाला की गाय-भैंस
बंधती है
और पाठशाला
दूर
उस पीपल तले लगती है
बनिए की दुकान में
पहले एक ओर डाकखाना था
वह भी तो कब का टूट गया
गाँव में आयी दुल्हन
पीहर को पाती
नहीं भेज पाती
नयी दिल्ली
इस साल चाँदी से तुलेगी
और मेरे गाँव के सवाल
एक बड़े वायदे के साथ
शायद मुसकरा कर
फिर टाल देगी