"अलका सर्वत मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
* [[परमाणु युद्ध. / अलका सर्वत मिश्रा]] | * [[परमाणु युद्ध. / अलका सर्वत मिश्रा]] | ||
</sort> | </sort> | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=अलका सर्वत मिश्रा | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | उन दोनों के बीच | ||
+ | |||
+ | जारी थी | ||
+ | |||
+ | गर्मागरम बहस | ||
+ | |||
+ | मुद्दा था | ||
+ | |||
+ | तुम बड़ॆ कि हम बड़े ! | ||
+ | |||
+ | |||
+ | एक कह्ता था – | ||
+ | |||
+ | परमाणु युद्ध होना चाहिये | ||
+ | |||
+ | ताकि | ||
+ | |||
+ | नष्ट हो जाए मनुष्य नाम की प्रजाति | ||
+ | |||
+ | देश काल की सीमाएं | ||
+ | |||
+ | अमीरी-गरीबी की रेखाएं | ||
+ | |||
+ | सत्य-असत्य का द्वन्द्व | ||
+ | |||
+ | और भारी पड़ता बाहुबल, | ||
+ | |||
+ | |||
+ | जिससे | ||
+ | |||
+ | फिर से पनपे | ||
+ | |||
+ | एक नई सभ्यता के साथ | ||
+ | |||
+ | एक नया मानव | ||
+ | |||
+ | जहाँ बुराइयाँ हों ही न | ||
+ | |||
+ | शैतानियत को ठिकाना न मिले. | ||
+ | |||
+ | |||
+ | दूसरा कह्ता था- | ||
+ | |||
+ | इस युद्ध से नष्ट हो जायेगी | ||
+ | |||
+ | हमारी वैज्ञानिक प्रगति | ||
+ | |||
+ | ये ऎशो-आराम के साधन | ||
+ | |||
+ | ये यान व विमान | ||
+ | |||
+ | हमारी कृषि | ||
+ | |||
+ | लाखों साल का विकास | ||
+ | |||
+ | इतनी सुन्दर गगनचुम्बी इमारतें | ||
+ | |||
+ | |||
+ | इन्हें फिर से प्राप्त करने मॅ | ||
+ | |||
+ | हजारॉ साल तक करना होगा | ||
+ | |||
+ | नए मानव को परिश्रम | ||
+ | |||
+ | और | ||
+ | |||
+ | हम पिछड़ जायेंगे | ||
+ | |||
+ | अन्य ग्रहॉ पर पनपती सभ्यता से, | ||
+ | |||
+ | ........तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए | ||
+ | |||
+ | परमाणु युद्ध. | ||
+ | |||
+ | |||
+ | मैं तो तभी से सोच रही हूँ | ||
+ | |||
+ | कि आखिर | ||
+ | |||
+ | दोनॉ मॅ से | ||
+ | |||
+ | बड़ा कौन ? | ||
+ | |||
+ | जरा आप भी सोचिए !</poem> |
15:53, 26 जून 2010 का अवतरण
www.kavitakosh.org/alkasarwatmishra
जन्म | 02 नवंबर 1974 |
---|---|
जन्म स्थान | दिल्ली, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
अलका सर्वत मिश्रा / परिचय | |
कविता कोश पता | |
www.kavitakosh.org/alkasarwatmishra |
<sort order="asc" class="ul">
- ज़िन्दगी जीने की कला / अलका सर्वत मिश्रा
- ये दो फूल / अलका सर्वत मिश्रा
- एक नयी दुनिया / अलका सर्वत मिश्रा
- इस धूप की नयी रंगत / अलका सर्वत मिश्रा
- आती हुई हवाएँ / अलका सर्वत मिश्रा
- कविताओं से / अलका सर्वत मिश्रा
- तुम दूर हो मुझसे / अलका सर्वत मिश्रा
- मैं पेड़ नहीं शहर हूँ / अलका सर्वत मिश्रा
- हमारी भावनाएँ / अलका सर्वत मिश्रा
- परमाणु युद्ध. / अलका सर्वत मिश्रा
</sort>
उन दोनों के बीच
जारी थी
गर्मागरम बहस
मुद्दा था
तुम बड़ॆ कि हम बड़े !
एक कह्ता था –
परमाणु युद्ध होना चाहिये
ताकि
नष्ट हो जाए मनुष्य नाम की प्रजाति
देश काल की सीमाएं
अमीरी-गरीबी की रेखाएं
सत्य-असत्य का द्वन्द्व
और भारी पड़ता बाहुबल,
जिससे
फिर से पनपे
एक नई सभ्यता के साथ
एक नया मानव
जहाँ बुराइयाँ हों ही न
शैतानियत को ठिकाना न मिले.
दूसरा कह्ता था-
इस युद्ध से नष्ट हो जायेगी
हमारी वैज्ञानिक प्रगति
ये ऎशो-आराम के साधन
ये यान व विमान
हमारी कृषि
लाखों साल का विकास
इतनी सुन्दर गगनचुम्बी इमारतें
इन्हें फिर से प्राप्त करने मॅ
हजारॉ साल तक करना होगा
नए मानव को परिश्रम
और
हम पिछड़ जायेंगे
अन्य ग्रहॉ पर पनपती सभ्यता से,
........तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए
परमाणु युद्ध.
मैं तो तभी से सोच रही हूँ
कि आखिर
दोनॉ मॅ से
बड़ा कौन ?
जरा आप भी सोचिए !