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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= साँवर दइया |संग्रह=}}‎{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>मेरी जड़ेंजमीन ज़मीन में कितनी गहरी हैं
यह सोचने वाला पेड़
आंधी आँधी के थपेड़ों सेउलट गया जमीन ज़मीन पर
कितने दिन रहेगा
तना हुआ मेरा पेड़-रूपी बदन ?
रोज रोज़ चलती हैयहां यहाँ अभावों की आंधीआँधी
धीरे-धीरे काटता है
जड़ों को जीवन
अब
यह गर्व फिजूल
मेरी जड़ेजड़ेंजमीन ज़मीन में कितनी गहरी हैं ?
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>
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