भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यूं है कि / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> यूँ है कि मेर…) |
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
यूँ है कि | यूँ है कि | ||
19:20, 4 जुलाई 2010 का अवतरण
यूँ है कि
मेरे सामने बैठा है कोई
मोम की शक्ल में ढल कर
बरसता हुआ बूँद-बूँद
ऐसे में
होना चाहता हूँ शीशा दिल
(मगर कहाँ से लाऊँ मैं वो शफ़्फ़ाक दिल)
गुज़रना
नदियाँ
जैसे गुज़र रही हैं
चुपचाप
सदियाँ
है अभी
इन अनलिखे कागज़ों में
धूप
बाकी है अभी
शिकस्ता साज़ में गोया
आवाज़
बाकी है अभी