भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यूं है कि / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> यूँ है कि मेर…)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
 
यूँ है कि
 
यूँ है कि
  

19:20, 4 जुलाई 2010 का अवतरण


यूँ है कि

मेरे सामने बैठा है कोई
मोम की शक्ल में ढल कर
बरसता हुआ बूँद-बूँद

ऐसे में
होना चाहता हूँ शीशा दिल
(मगर कहाँ से लाऊँ मैं वो शफ़्फ़ाक दिल)

गुज़रना
नदियाँ
जैसे गुज़र रही हैं
चुपचाप

सदियाँ
है अभी
इन अनलिखे कागज़ों में

धूप
बाकी है अभी
शिकस्ता साज़ में गोया

आवाज़
बाकी है अभी