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"हाथ-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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<poem>मेरे हाथ
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मेरे हाथ
 
मेरे कंधों पर थे
 
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लोगों ने
 
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मेरे हाथ ढूंढे
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मेरे हाथ ढूँढ़े
क्रांतियो में
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क्राँतियो में
भ्रांतियो में
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यानी
 
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तमाम अपघटितों में
 
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बेबाक गवाहियां
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बेबाक गवाहियाँ
 
निर्लज्ज पुष्टियों में थी
 
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जबकि मैं
 
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दूर खड़ा  
 
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दोनों हाथ  
 
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मलता रहा.
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मलता रहा
 
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22:28, 16 जुलाई 2012 का अवतरण

मेरे हाथ
मेरे कंधों पर थे
फिर भी
लोगों ने
मेरे हाथ ढूँढ़े
क्राँतियो में
भ्राँतियो में
यानी
तमाम अपघटितों में
बेबाक गवाहियाँ
निर्लज्ज पुष्टियों में थी
जबकि मैं
असहाय मौन
दूर खड़ा
दोनों हाथ
मलता रहा ।