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नीरा के लिए / सुनील गंगोपाध्याय
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14:17, 16 जुलाई 2010
<poem>
नीरा! तुम लो दोपहर की स्वच्छता
लो रात की
दूरियां
दूरियाँ
तुम लो चन्दन-समीर
लो नदी किनारे की
कुंआरी
कुँआरी
मिट्टी की
िस्नग्ध
स्निग्ध
सरलता
हथेलियों पर नींबू के पत्तों की गंध
नीरा, तुम घुमाओ अपना चेहरा
अनिल जनविजय
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