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"अब तो मज़हब / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। | अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। | ||
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जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। | जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। | ||
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जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर | जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर | ||
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फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। | फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए। | ||
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आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी | आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी | ||
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कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। | कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए। | ||
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प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए | प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए | ||
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हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए। | हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए। | ||
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मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा | मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा | ||
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मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए। | मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए। | ||
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जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे | जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे | ||
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मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए। | मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए। | ||
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गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी | गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी | ||
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ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए। | ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए। | ||
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01:17, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण
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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।