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"गीत-1 / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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सागर झरने रोयेंगे तो मेरे असुंअन का क्या होगा
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सागर झरने रोएँगे तो मेरे अँसुअन का क्या होगा
 
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा
 
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा
  
मैंने मन के आंगन में, प्रेम सुमन खिलाये थे
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मैंने मन के आँगन में, प्रेम सुमन खिलाए थे
तुमने अपनी खुशबु से, जो आकर के महकाये थे
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तुमने अपनी ख़ुशबु से, जो आकर के महकाए थे
तुम प्रेम नदी ही सूख गई तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….………………
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तुम प्रेम नदी ही सूख गईं तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….………………
  
 
मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था
 
मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था
तुमको उस मंदिर में एक देवी सजाया था
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तुमको उस मंदिर में एक देवी सा सजाया था
 
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……।
 
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……।
 
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19:12, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण


सागर झरने रोएँगे तो मेरे अँसुअन का क्या होगा
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा

मैंने मन के आँगन में, प्रेम सुमन खिलाए थे
तुमने अपनी ख़ुशबु से, जो आकर के महकाए थे
तुम प्रेम नदी ही सूख गईं तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….………………

मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था
तुमको उस मंदिर में एक देवी सा सजाया था
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……।
1988