भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गीत-1 / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> सागर झरने रोयेंग…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | सागर झरने | + | सागर झरने रोएँगे तो मेरे अँसुअन का क्या होगा |
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा | हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा | ||
− | मैंने मन के | + | मैंने मन के आँगन में, प्रेम सुमन खिलाए थे |
− | तुमने अपनी | + | तुमने अपनी ख़ुशबु से, जो आकर के महकाए थे |
− | तुम प्रेम नदी ही सूख | + | तुम प्रेम नदी ही सूख गईं तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….……………… |
मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था | मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था | ||
− | तुमको उस मंदिर में एक देवी | + | तुमको उस मंदिर में एक देवी सा सजाया था |
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……। | जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……। | ||
1988 | 1988 | ||
<poem> | <poem> |
19:12, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
सागर झरने रोएँगे तो मेरे अँसुअन का क्या होगा
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा
मैंने मन के आँगन में, प्रेम सुमन खिलाए थे
तुमने अपनी ख़ुशबु से, जो आकर के महकाए थे
तुम प्रेम नदी ही सूख गईं तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….………………
मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था
तुमको उस मंदिर में एक देवी सा सजाया था
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……।
1988