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लौ-ए-दिल जला दूँ क्या / जॉन एलिया
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04:33, 1 अगस्त 2010
जुर्म क्यों किये जाएँ
जुर्म हो तो
ख़
त
ख़त
ही क्यों लिखे जाएँ
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द्विजेन्द्र द्विज
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