भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुंडेर पर पतझड़ / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान }} <poem> ए…)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
 
एकाकीपन के मध्य  
 
एकाकीपन के मध्य  
स्मरीतयों के खुले आकाश पर
+
स्मृतियों के खुले आकाश पर
 
विचरण कर रहे हैं  
 
विचरण कर रहे हैं  
 
उदासियों के पक्षी  
 
उदासियों के पक्षी  
  
कहाँ कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
+
कहाँ-कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
 
बैठते चले जा रहे हैं
 
बैठते चले जा रहे हैं
 
मन मुंडेर पर!
 
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना कोना  
+
भीग गया है अंतस का कोना-कोना  
  
 
क्यों आ जाता है
 
क्यों आ जाता है
 
वसंत के तुंरत बाद  
 
वसंत के तुंरत बाद  
 
पतझड़ ?
 
पतझड़ ?
क्यों नहीं भाति उदासियों को
+
क्यों नहीं भाती उदासियों को
 
खुशियों की  
 
खुशियों की  
 
नन्ही चमकीली बूँदें ?
 
नन्ही चमकीली बूँदें ?
 
</poem>
 
</poem>

02:20, 4 अगस्त 2010 का अवतरण


एकाकीपन के मध्य
स्मृतियों के खुले आकाश पर
विचरण कर रहे हैं
उदासियों के पक्षी

कहाँ-कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना-कोना

क्यों आ जाता है
वसंत के तुंरत बाद
पतझड़ ?
क्यों नहीं भाती उदासियों को
खुशियों की
नन्ही चमकीली बूँदें ?