भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रही अछूती / हरीश भादानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>रही अछूती सभी मटकियाँ मन के कुशल कुम्हार की रही अछूती.... साध…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>रही अछूती  
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=हरीश भादानी
 +
|संग्रह=आड़ी तानें-सीधी तानें / हरीश भादानी
 +
}}
 +
{{KKCatGeet}}
 +
<poem>
 +
रही अछूती  
 
सभी मटकियाँ
 
सभी मटकियाँ
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
         रही अछूती....
 
         रही अछूती....
 
  
 
साधों की रसमस माटी
 
साधों की रसमस माटी
पंक्ति 9: पंक्ति 15:
 
क्वांरा रूप उभार दिया
 
क्वांरा रूप उभार दिया
 
सतरंगी सपने आँककर
 
सतरंगी सपने आँककर
 
  
 
         हाट सजाई
 
         हाट सजाई
पंक्ति 18: पंक्ति 23:
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
         रही अछूती....
 
         रही अछूती....
 
  
 
अलसाई ऊषा छूदे
 
अलसाई ऊषा छूदे
पंक्ति 31: पंक्ति 35:
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
         रही अछूती....
 
         रही अछूती....
 
  
 
हठी चितेरा प्यासा ही
 
हठी चितेरा प्यासा ही
पंक्ति 37: पंक्ति 40:
 
भरी उमर की बाजी पर
 
भरी उमर की बाजी पर
 
विश्वास लगे हैं दाँव में
 
विश्वास लगे हैं दाँव में
 
  
 
         हार इसी आँगन
 
         हार इसी आँगन
पंक्ति 45: पंक्ति 47:
 
सभी मटकियाँ
 
सभी मटकियाँ
 
मन के कुशल कुम्हार की
 
मन के कुशल कुम्हार की
         रही अछूती...</poem>
+
         रही अछूती...
 +
</poem>

01:24, 7 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
        रही अछूती....

साधों की रसमस माटी
फेरी साँसों के चाक पर,
क्वांरा रूप उभार दिया
सतरंगी सपने आँककर

        हाट सजाई
        आहट सुनने
        कंगनिया झन्कार की
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
        रही अछूती....

अलसाई ऊषा छूदे
मुस्का मूंगाये छोर से,
मेहँदी के संकेत लिखे
संध्या पाँखुरिया पोर से
        चौराहे रख दी
        बंधने को
        बाँहों में पनिहार की
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
        रही अछूती....

हठी चितेरा प्यासा ही
बैठा है धुन के गाँव में,
भरी उमर की बाजी पर
विश्वास लगे हैं दाँव में

        हार इसी आँगन
        पंचोली
        साधे राग मल्हार की
रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
        रही अछूती...