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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : सड़कवासी राम!<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : काजू भुनी पलेट में<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[हरीश भादानी]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अदम गोंडवी]]</td>
 
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
सड़कवासी राम!
+
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
 +
उतरा है रामराज विधायक निवास में
 +
 +
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
 +
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
  
न तेरा था कभी
+
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
न तेरा है कहीं
+
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
रास्तों दर रास्तों पर
+
पाँव के छापे लगाते ओ अहेरी
+
खोलकर
+
मन के किवाड़े सुन
+
सुन कि सपने की
+
किसी सम्भावना तक में नहीं
+
तेरा अयोध्या धाम।
+
सड़कवासी राम!
+
  
सोच के सिर मौर
+
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
ये दसियों दसानन
+
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
और लोहे की ये लंकाएँ
+
कहाँ है कैद तेरी कुम्भजा
+
खोजता थक
+
बोलता ही जा भले तू
+
कौन देखेगा
+
सुनेगा कौन तुझको
+
ये चितेरे
+
आलमारी में रखे दिन
+
और चिमनी से निकलती शाम।
+
सड़कवासी राम!
+
  
पोर घिस घिस
+
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
क्या गिने चौदह बरस तू
+
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
गिन सके तो
+
कल्प साँसों के गिने जा
+
गिन कि
+
कितने काटकर फेंके गए हैं
+
ऐषणाओं के पहरूए
+
ये जटायु ही जटायु
+
और कोई भी नहीं
+
संकल्प का सौमित्र
+
अपनी धड़कनों के साथ
+
देख वामन सी बड़ी यह जिन्दगी
+
कर ली गई है
+
इस शहर के जंगलों के नाम।
+
सड़कवासी राम!
+
 
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19:43, 21 अगस्त 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : काजू भुनी पलेट में
  रचनाकार: अदम गोंडवी
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
 
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में