भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पक्के गायक / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप । साज़ मिले पंद्रह मिनट. घंटाभ…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | तंबूरा ले मंच पर बैठे | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | साज़ मिले पंद्रह मिनट. घंटाभर | + | |रचनाकार=काका हाथरसी |
− | + | |अनुवादक= | |
− | घंटाभर आलाप, राग में मारा गोता । | + | |संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी |
− | + | }} | |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप। | ||
+ | साज़ मिले पंद्रह मिनट. घंटाभर आलाप॥ | ||
+ | घंटाभर आलाप, राग में मारा गोता । | ||
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता ॥ | धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता ॥ | ||
− | + | कहें 'काका', सम्मेलन में सन्नाटा छाया। | |
− | कहें 'काका', सम्मेलन में सन्नाटा छाया। | + | |
− | + | ||
श्रोताओं में केवल हमको बैठा पाया ॥ | श्रोताओं में केवल हमको बैठा पाया ॥ | ||
− | + | कलाकार जी ने कहा, होकर भाव-विभोर। | |
− | कलाकार जी ने कहा, होकर भाव- | + | काका ! तुम संगीत के प्रेमी हो घनघोर॥ |
− | + | प्रेमी हो घनघोर, न हमने सत्य छिपाया। | |
− | काका ! तुम संगीत के प्रेमी हो | + | अपने बैठे रहने का कारण बतलाया॥ |
− | + | 'कृपा करें' श्रीमान ! मंच का छोड़ें पीछा। | |
− | प्रेमी हो घनघोर, न हमने सत्य छिपाया। | + | तो हम घर ले जाएं अपने फर्श-गलीचा॥ |
− | + | </poem> | |
− | अपने बैठे रहने का कारण | + | |
− | + | ||
− | 'कृपा करें' श्रीमान ! मंच का छोड़ें | + | |
− | + | ||
− | तो हम घर ले जाएं अपने फर्श- | + |
12:23, 18 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप।
साज़ मिले पंद्रह मिनट. घंटाभर आलाप॥
घंटाभर आलाप, राग में मारा गोता ।
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता ॥
कहें 'काका', सम्मेलन में सन्नाटा छाया।
श्रोताओं में केवल हमको बैठा पाया ॥
कलाकार जी ने कहा, होकर भाव-विभोर।
काका ! तुम संगीत के प्रेमी हो घनघोर॥
प्रेमी हो घनघोर, न हमने सत्य छिपाया।
अपने बैठे रहने का कारण बतलाया॥
'कृपा करें' श्रीमान ! मंच का छोड़ें पीछा।
तो हम घर ले जाएं अपने फर्श-गलीचा॥