Changes

दूर युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर ।
भागचन्द की आज तक सोई है तकदीर ।।
सोई है तकदीर, बहुत से देखे भाले । निकले प्रिय सुखदेव सभी दु:ख दुःख देने वाले ।।
कह काका कविराय आँकड़े बिलकुल सच्चे ।
बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे  ।।
आकुल व्याकुल दीखते शर्मा परमानन्द । कार्य अधूरे छोड़कर भागे पूरनचँद ।।
भागे पूरनचँद, अमर जी मरते देखे । मिश्रीबाबू कड़वी बातें करते देखे ।।
कह काका भण्डारासिंह जी रीते-थोथे । बीत गया जीवन विनोद का रोते-धोते ।।
शीला जीजी लड़ रही, सरला करती शोर । कुसुम, कमल, पुष्पा, सुमन, निकली बड़ी कठोर ।।
निकली बड़ी कठोर, निर्मला मन की मैली । सुधा सहेली अमृताबाई सुनी विषैली ।।
कह काका कवि बाबूजी क्या देखा तुमने ? बल्ली जैसी मिस लल्ली देखीं हैं हमने ।।
कलयुग में कैसे निभे पति -पत्नी का साथ । चपलादेवी को मिले बाबू भोलेनाथ ।।
बाबू भोलेनाथ कहाँ तक कहें कहानी ।
पंडित रामचंद्र की पत्नी राधारानी ।।
काका लक्ष्मीनारायन की गृहणी रीता । कृष्णचंद्र की वाइफ वाइफ़ बन कर आई सीता ।।
पूँछ न आधी इंच भी कहलाते हनुमान । मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर कमान ।।
घर में तीर कमान, बदी करता है नेका । तीर्थराज ने कभी न इलाहबाद इलाहाबाद देखा ।।
सत्यपाल काका की रक़म डकार चुके हैं ।
विजयसिंह दस बार इलेक्शन हार चुके हैं ।।
सुखीरामजी अति दु:खी दु:खीराम दुःखी दुःखीराम अलमस्त । हिकमतराय हकीमजी रहे सदा अस्वस्थ ।।
रहे सदा अस्वस्थ, प्रभु की देखो माया । प्रेमचन्द में रत्तीभर भी प्रेम न पाया  कह काका जब वृत-उपवासों के दिन आते । त्यागी साहब अन्न त्याग कर रिश्वत खाते ॥।।
कह काका जब वृत-उपवासों के दिन आते ।
त्यागी साहब अन्न त्याग कर रिश्वत खाते ।।
रामराज के घाट पर आता जब भूचाल । लुढ़क जाएँ श्रीतख्तमल बैठे घूरेलाल ।।
बैठे घूरेलाल रंग किस्मत क़िस्मत दिखलाती । इत्रसिंह के कपड़ों में से बदबू आती  कह काका गम्भीरसिंह मुँह फाड़ रहे हैं । महाराज लाला की गद्दी झाड़ रहे हैं ॥।।
कह काका गम्भीरसिंह मुँह फाड़ रहे हैं ।
महाराज लाला की गद्दी झाड़ रहे हैं ।।
दूधनाथ जी पी रहे सपरेटा की चाय । गुरु गोपालप्रसाद के घर में मिली न गाय ।।
घर में मिली न गाय, समझ लो असली कारण । माखन छोड़ डालडा खाते बृजनारायण  काका प्यारेलाल सदा गुर्राते देखे । हरिश्चन्द्र जी झूठे केस लड़ाते देखे ॥।।
काका प्यारेलाल सदा गुर्राते देखे ।
हरिश्चन्द्र जी झूठे केस लड़ाते देखे ।।
रूपराम के रूप की निन्दा करते मित्र । चकित रह गए देख कर कामराज का चित्र ।।
कामराज का चित्र थक गए करके विनती ।
यादराम को याद न होती सौ तक गिनती  कह काका कविराय बड़े निकले बेदर्दी । भरतराम ने चरतराम पर नालिश कर दी ॥।।
कह काका कविराय बड़े निकले बेदर्दी ।
भरतराम ने चरतराम पर नालिश कर दी ।।
नाम -धाम से काम का क्या है सामञ्जस्य ? किसी पार्टी के नहीं झंडाराम सदस्य ।।
झंडाराम सदस्य, भाग्य की मिले न रेखा ।
स्वर्णसिंह के हाथ कड़ा लोहे का देखा ।।
कह काका कंठस्थ करो ये बड़े काम की । माला पूरी हुई एक सौ आठ नाम की ।।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,362
edits