भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दे दिया मैंने / रवीन्द्र भ्रमर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatNavgeet}} |
<Poem> | <Poem> | ||
आज का यह दिन | आज का यह दिन |
03:13, 23 अगस्त 2010 का अवतरण
आज का यह दिन
तुम्हें दे दिया मैंने
आज दिन भर तुम्हारे ही ख़यालों में लगा मेला,
मन किसी मासूम बच्चे-सा फिरा भटका अकेला,
आज भी तुम पर
भरोसा किया मैंने ।
आज मेरी पोथियों में शब्द बनकर तुम्हीं दीखे,
चेतना में उग रहे हैं अर्थ कितने मधुर-तीखे,
जिया मैंने ।
आज सारे दिन बिना मौसम घनी बदली रही है,
सहन आँगन में उमस की, प्यास की धारा बही है,
सुबह उठकर नाम जो
ले लिया मैंने ।