भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धूप / रामकृष्ण पांडेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्ण पांडेय |संग्रह =आवाज़ें / रामकृष्…) |
छो (धूप / रामकृष्ण पांडेय का नाम बदलकर धूप / रामकृष्ण पांडेय कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:35, 29 अगस्त 2010 का अवतरण
1.
सफ़ेद बगुले-सी
उतरी है धूप
धरती पर बैठी है
पंख फैलाए
2.
सागर की लहरों से
छूटकर
रेत पर पड़ी है
झक-झक सफ़ेद सीपी-सी
धूप
3.
धूप को अपना अहसास नहीं है
जैसे चिड़ियों को अपने गीतों का नहीं है
जैसे पेड़ को अपने हरेपन का नहीं है
जैसे नदी को अपने प्रवाह का नहीं है
जैसे दिन को अपने उजाले का नहीं है
पर नहीं है अँधेरा अनमना
वह है बदस्तूर और भी घना