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"ढाई आखर / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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12:27, 31 अगस्त 2010 का अवतरण

उस ने
वह पूरी किताब पढ़ ली
अब वह
पूरी किताब है
मगर
उसे
आज तक
कोई पाठक नहीं मिला।

उस ने
जो किताब पढ़ी थी
उसे अब तक
दीमक चाट चुकी होगी
लेकिन
वह दीमक के लिए नहीं है
खुल जाएगा
एक दिन
सब के सामने
और
बंचवा देगा
अपने ढाई आखर सब को।