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"कुछ छुटी हुई कविताएं / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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जिन्दगी
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'''जिन्दगी'''
 
जिसने भी देखा
 
जिसने भी देखा
 
मुंह फेरकर चल दिया
 
मुंह फेरकर चल दिया
बेबस पड़ी थी जिन्दगी 1990
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बेबस पड़ी थी जिन्दगी  
घर
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1990
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बरतन सूखे हैं
 
बरतन सूखे हैं
 
बच्चे भूखे हैं
 
बच्चे भूखे हैं
 
चूल्हा ठंडा पड़ा है
 
चूल्हा ठंडा पड़ा है
बाप कहीं पीकर पड़ा है 1988
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बाप कहीं पीकर पड़ा है  
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रात
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चूहे जगते सारी रात
 
चूहे जगते सारी रात
 
भगते फिरते सारी रात
 
भगते फिरते सारी रात
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बरतन बजते सारी रात
 
बरतन बजते सारी रात
 
1992
 
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जो जिन्दगी से दूर है
 
जो जिन्दगी से दूर है
 
वो शायरी मशहूर है
 
वो शायरी मशहूर है

18:13, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण


जिन्दगी
जिसने भी देखा
मुंह फेरकर चल दिया
बेबस पड़ी थी जिन्दगी
1990

घर
बरतन सूखे हैं
बच्चे भूखे हैं
चूल्हा ठंडा पड़ा है
बाप कहीं पीकर पड़ा है
1988

रात
चूहे जगते सारी रात
भगते फिरते सारी रात
कटे खोज में सारी रात
बरतन बजते सारी रात
1992
      
 ।। 1 ।।
जो जिन्दगी से दूर है
वो शायरी मशहूर है

ये किस मकाम पे खड़े हैं सब
शम्माएं बेअसर, चिराग बेनूर है

।। 2 ।।
जंगल है, सहरां हैं, मकां हैं
नए जमाने में आदमी की फसल नहीं होती

।। 3 ।।
रोटी का सवाल है
आदमी मशाल है

एटमों के दौर में
जिन्दगी हलाल है

।। 4 ।।
संभल कर चलते हैं लोग
असल में डरते हैं लोग
जबसे डरने लगे हैं लोग
रोज मरने लगे हैं लोग
1995