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"थरथराता रहा / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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18:11, 3 जुलाई 2008 का अवतरण
{एक विचित्र प्रेम अनुभूति}
थरथराता रहा जैसे बेंत
मेरा काय...कितनी देर तक
आपादमस्तक
एक पीपल-पात मैं थरथर ।
कांपती काया शिराओं-भरी
झन-झन
देर तक बजती रही
और समस्त वातावरण
मानो झंझावात
ऎसा क्षण वह आपात
स्थिति का
('प्रतिनिधि कविताएं' नामक संग्रह से)