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फ़राज़ साहब की शायरी के प्रति दीवानगी का मैं कायल हो गया. लेकिन इस ग़ज़ल के भी दो तीन शेरों में ग़लतियाँ हैं. | फ़राज़ साहब की शायरी के प्रति दीवानगी का मैं कायल हो गया. लेकिन इस ग़ज़ल के भी दो तीन शेरों में ग़लतियाँ हैं. | ||
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11:27, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण
संकल्प,
कविता कोश पर इस तरह बाहरी वैबसाइट्स या ब्लॉग्स के लिंक्स देने का अभी कोई प्रावधान नहीं है। कृप्या जिन पन्नों पर आपने बाहरी लिंक्स डाले हैं -वहाँ से ये लिंक्स हटा लीजिये।
शुभाकांक्षी
--सम्यक ०८:०१, ३ मई २००९ (UTC)
संकल्प
आपने फ़राज़ साहब की जो यह ग़ज़ल क़विता कोश में डा
ली है इसमें कुछ ग़लतियाँ साफ नज़र आ रही हैं , जिससे कारण क. को. की गुनवता पर प्रश्न-चिन्ह लगता है,
ज़ाहिर है कि फराज़ साहब ने वो गलतियाँ नहीं की होंगी
। मुझे इस ग़ज़ल के सोर्स के बारे में बताएँ ताकि वे ग़लतियाँ सुधारी जा सकें।
शुभाकांक्षी
--द्विजेन्द्र द्विज19 सितम्बर 2010
संकल्प फ़राज़ साहब की शायरी के प्रति दीवानगी का मैं कायल हो गया. लेकिन इस ग़ज़ल के भी दो तीन शेरों में ग़लतियाँ हैं. जो तब तक सुधारी नहीं जा सकती जब तक वास्त्विक Text सामने न हो.
--द्विजेन्द्र द्विज11.28 26 सितम्बर
2010