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21:48, 28 मई 2007 का अवतरण
रचनाकारः रमा द्विवेदी
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कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?
कैसे रचे इतिहास जब आकाश बंदी है यहाँ?
अंकुर अभी पनपा ही था कि नष्ट तुमने कर दिया,
कैसे लेंगे जन्म जब गर्भांश बंदी यहाँ?
कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?
सपने भी जब देखे हमने उनपे भी पहरे लगे,
कैसे पूरे होंगे जब हर ख्वाब बंदी है यहाँ?
कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?
सदियों से ऋतु बदली नहीं,अपनी तो इक बरसात है,
कैसे करें त्योहार जब मधुमास बंदी है यहाँ?
कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?
त्याग की कीमत न समझी, त्याग जो हमने किए,
छीन लीन्हीं धड़कनें, पर लाश बंदी है यहाँ।
कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?
कुछ कहने को जब खोले लब,खामोश उनको कर दिया,
कैसे करें अभिव्यक्त जब हर भाव बंदी है यहाँ?
कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?
खून की वेदी रचाकर तन को भी दफ़ना दिया,
कैसे जियें, कैसे मरें अहसास बंदी है यहाँ?
कैसे करें उल्लास जब हर सांस बंदी है यहाँ?