Changes

कभी तो../ आईदान सिंह भाटी

211 bytes added, 06:05, 1 नवम्बर 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=आईदान सिंह भाटी|संग्रह=}}[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>कभी तो भूलो
बच्चों को भूगोल पढ़ाना
हंसो हँसो गड़गड़ हंसी हँसी हंसो हँसो !जिससे बज उठें हिये हिय के तार ।
पहली बारिश से जैसे पनपते हैं
वर्षों से सूखे-थार में पुष्प पल्लव ।
 तुम्हारे हंसते हँसते हीहंसने हँसने लगेगा
चूल्हे पर तपता तवा
और तवे पर सिकती हुई रोटी ।
तुम्हारे हंसते हँसते ही
खिल उठेंगे
बेलों पर फूल ।
खेजड़ों पर मिमंझर
और बच्चों की आंखों आँखों में भूगोल(जरूरत ज़रूरत नहीं रहेगी फिर तुम्हें भूगोल रटाने की) 
कभी तो बनाओ
मन को चिड़िया
जंगल का विहाग
घर आंगन आँगन की गौरैया । 
उड़ो आकाश में
ऊंचे ऊँचे और ऊंचेऊँचे
बताओ बच्चों को आकाश और
ऊंचाई ऊँचाई का अर्थ ।कभी ‘फ्लैट’ की पांचवीं मंजिल पाँचवीं मंज़िल में
बच्चों के सामने बन जाओ ऐसे
जैसे हुड़दंग करते थे बचपन में
फससों और चौपालों पर ।
 भूलो कभी तो कुछ जरूरी ज़रूरी बातें
बदलो पुरानी पुस्तकों के पन्ने
पढ़ो वह आखर माल
जिसके नीचे कभी खींची थी लकीरें ।
(लकीरें जिनमें छुपे हैं उस समय के अर्थ)
आंखें आँखें खोलो और देखो
अभी तक आते हैं
रोहिड़ों पर लाल फूल
वर्षा ऋतु में हरियल होता है
 धरती का आंगनआँगनहरे होते हैं सूखे ठूंठठूँठ
आज तक ।
आकाश में अभी तक उगता है वह तारा
जिसे तुम बचपन में निहारा करते थे
बाल कथाओं के बीच ।
(अपने बच्चों की आखों आँखों में उगाओ वह तारा) उछलो बछड़ो की भांतिभाँति
सुनहरे धोरों पर जा कर
कभी तो
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits