भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सागर के सीप (कविता) / भारत भूषण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumaranil123 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण }} Category:गीत <poem> ये उर-सागर के सीप तुम्हे…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:गीत]] | [[Category:गीत]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता | + | ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हूँ । |
− | ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता | + | ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ । |
− | है दर्द-कीट ने युग-युग इन्हें बनाया | + | |
− | + | है दर्द-कीट ने | |
− | जब रह न सके ये मौन, स्वयं तिर | + | युग-युग इन्हें बनाया |
− | भव तट पर काल तरंगों ने | + | आँसू के |
− | है | + | खारी पानी से नहलाया |
− | खोजो, पा ही जाओगे कोई मोती | + | |
− | ये उर सागर की सीप तुम्हें देता | + | जब रह न सके ये मौन, |
− | ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता | + | स्वयं तिर आए |
+ | भव तट पर | ||
+ | काल तरंगों ने बिखराए | ||
+ | |||
+ | है आँख किसी की खुली | ||
+ | किसी की सोती | ||
+ | खोजो, | ||
+ | पा ही जाओगे कोई मोती | ||
+ | |||
+ | ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हूँ | ||
+ | ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ | ||
</poem> | </poem> |
10:06, 1 नवम्बर 2010 का अवतरण
ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हूँ ।
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ ।
है दर्द-कीट ने
युग-युग इन्हें बनाया
आँसू के
खारी पानी से नहलाया
जब रह न सके ये मौन,
स्वयं तिर आए
भव तट पर
काल तरंगों ने बिखराए
है आँख किसी की खुली
किसी की सोती
खोजो,
पा ही जाओगे कोई मोती
ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हूँ
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ