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"सागर के सीप (कविता) / भारत भूषण" के अवतरणों में अंतर

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ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हॅूं
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ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हूँ ।
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूॅं
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ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ ।
है दर्द-कीट ने युग-युग इन्हें बनाया
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ऑंसू के खारी पानी से नहलाया
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है दर्द-कीट ने  
जब रह न सके ये मौन, स्वयं तिर आये
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युग-युग इन्हें बनाया
भव तट पर काल तरंगों ने बिखराये
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आँसू के  
है ऑंख किसी की खुली किसी की सोती
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खारी पानी से नहलाया
खोजो, पा ही जाओगे कोई मोती
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ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हॅूं
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जब रह न सके ये मौन,  
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूॅं
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स्वयं तिर आए
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भव तट पर  
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काल तरंगों ने बिखराए
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है आँख किसी की खुली  
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किसी की सोती
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खोजो,  
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पा ही जाओगे कोई मोती
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ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हूँ
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ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ
 
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10:06, 1 नवम्बर 2010 का अवतरण

ये उर-सागर के सीप तुम्हें देता हूँ ।
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ ।

है दर्द-कीट ने
युग-युग इन्हें बनाया
आँसू के
खारी पानी से नहलाया

जब रह न सके ये मौन,
स्वयं तिर आए
भव तट पर
काल तरंगों ने बिखराए

है आँख किसी की खुली
किसी की सोती
खोजो,
पा ही जाओगे कोई मोती

ये उर सागर की सीप तुम्हें देता हूँ
ये उजले-उजले सीप तुम्हें देता हूँ