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+ | बज़्म ने लब तो खुलने की मोहलत न दी | ||
+ | एक खमोशी रही दरमियां देर तक | ||
+ | मैं तो करके सवाल अपना खामोश था | ||
+ | तारे गिनता रहा आसमां देर तक | ||
+ | देखकर चाक दामन रफ़ूगर सभी | ||
+ | बस उड़ाते रहे धज्जियां देर तक | ||
+ | कुछ तो तारीकियां ले गईं हौसले | ||
+ | कुछ डराती रहीं आंधियां देर तक | ||
+ | वो बहारों का मौसम बदल ही गया | ||
+ | देखें ठहरेंगी कैसे खिज़ां देर तक | ||
+ | कोई शाहिद ये दरिया से पूछे ज़रा | ||
+ | क्यों तड़पती रहीं मछलियां देर तक | ||
+ | शाहिद मिर्ज़ा शाहिद |
18:30, 3 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
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तारे गिनता रहा आसमां देर तक
नज़रें करती रहीं कुछ बयां देर तक हम भी पढ़ते रहे सुर्खियां देर तक आओ उल्फ़त की ऐसी कहानी लिखें ज़िक्र करता रहे ये जहां देर तक बज़्म ने लब तो खुलने की मोहलत न दी एक खमोशी रही दरमियां देर तक मैं तो करके सवाल अपना खामोश था तारे गिनता रहा आसमां देर तक देखकर चाक दामन रफ़ूगर सभी बस उड़ाते रहे धज्जियां देर तक कुछ तो तारीकियां ले गईं हौसले कुछ डराती रहीं आंधियां देर तक वो बहारों का मौसम बदल ही गया देखें ठहरेंगी कैसे खिज़ां देर तक कोई शाहिद ये दरिया से पूछे ज़रा क्यों तड़पती रहीं मछलियां देर तक शाहिद मिर्ज़ा शाहिद