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"खजुराहो जाते में / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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22:00, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
जहाँ
सब ओर है
धूल-धूसर,
बिना पानी का
प्यासा प्रदेश,
और
जहाँ
बाँध तक चली गई है,
दौड़ती,
हाँफती,
धूप से धधकती,
पानी तलाशती सड़क
वहाँ
उस विषण्य में
दिखाई दे गए मुझे
तीन पेड़ कचनार,
कमर से ऊपर छतनार,
फूले,
बैंगनी,
जानदार,
जैसे जवान गँवई दिलदार;
और
मैं देखता रह गया इन्हें
ठगा
भूला भरमाया
और फिर
हो गया
तीन के पास खड़ा,
चौंका पेड़ कचनार,
वैसा ही छतनार,
फूला,
बैंजनी,
जानदार, मैं
जैसे जवान गँवई दिलदार,
हर्ष से हरता, मारता,
विषण्य का तिलमिलापन
रचनाकाल: २२-०३-१९७१