"उड़ीकै है पींपळ / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | < | + | <poem> |
− | + | ||
उजड़यौड़े कुंभाणै री | उजड़यौड़े कुंभाणै री | ||
गुवाड़ में ऊभो | गुवाड़ में ऊभो | ||
पंक्ति 91: | पंक्ति 90: | ||
आपरी बच्योड़ी उमर सूंप‘र | आपरी बच्योड़ी उमर सूंप‘र | ||
मुगत हुय जावै। | मुगत हुय जावै। | ||
− | + | </poem> | |
− | </ | + |
10:17, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
उजड़यौड़े कुंभाणै री
गुवाड़ में ऊभो
ओ पींपळ
फगत एक रूंख कोनी
गांव रै बडेरा गळांई है
जको लारै छूटग्यो।
इकचाळीस रै साल
तोपाभ्यास सारू
जिण चौंतीस गांवां री जमीन
सेना नै सूंपीजी
उण में एक हो कुंभाणो।
गांव जैड़ो गांव हो कुंभाणो
जीता जागतो
एक काळजै धड़कतो गांव
सवा सौ घरां री बस्ती में
जठै पड़तख दीसता
जूण रा हजार रंग।
ठाकुर जी रै मिन्दर रै नगाड़ै सागै
ऊगतो हो दिन
अर इण पींपळ हेठै ई
गुरबत बिचाळै बिसूंजतो
भोर सूं आथण तांई
खेत रो खोरसो
डांगरां री टंडावाळी
आसरां री सार-संभाळ
तीज-तिंवार रा नेगचार
सांचाणी सतरंगी हो
जीवण रो आंगणो।
पींपळ रै डावै पासै
भंवरिये कुए माथै
पणिहार्यां री लैण कोनी टूटती।
गौर पूजण
जद गांव री छोरयां-छापरयां
पींपळ हेठै भेळी हुय‘र
गीतां रा सुर छेड़ती
उण घड़ी पींपळ रै हिवड़ै
उमाव मावड़तो कोनी।
काती में
भोरांनभोर
गांव री लुगायां
भजनां भेळी
पैलपोत
पींपळ ई सींचती।
पण अबै कठै बो कुंभाणो
हणै तो साव उजाड़ है
ओळूं नै टाळ‘र।
जमींदोट हुयोड़ा ढूंढ़ा
बिना छात रा आसरा
बिना भींता री बाखळ
माणस बिहूणो
बांडो बूचो गांव
घणो अणखावणो लागै।
अबै कोनी सुणीजै
दिन छिपतां ई
बावड़तै पसुवां री टण-टणाठ
कोनी दीसै
पोसाळ मांय टाबरियां रा टोळ
फगत हवा री सूसांट
मून सागै
बाथेड़ो करती लखावै।
कुंभाणै रै ऐनाणां री
साव ऐकलो
रूखाळी करतो
बूढ़ियो पींपळ ई
अणमनो-सो दिन टिपावै
जाणै डोकरो
उडीकतो हुवै
कै कदी कोई
नूंवो परणीज्योड़ो जोड़ो
गंठजोडै़ री जात रै मिस
उणरै हेठै आय‘र बैठ जावै
अर बडेरो पींपळ
आसीस रै ओळावै
आपरी बच्योड़ी उमर सूंप‘र
मुगत हुय जावै।