भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुबह की आस / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} Category:गज़ल सुबह की आस किसी लम्हे जो घ...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर | |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
+ | <poem> | ||
+ | सुबह की आस किसी लम्हे जो घट जाती है | ||
+ | ज़िन्दगी सहम के ख़्वाबों से लिपट जाती है | ||
− | + | शाम ढलते ही तेरा दर्द चमक उठता है | |
− | + | तीरगी दूर तलक रात की छट जाती है | |
− | + | बर्फ़ सीनों की न पिघले तो यही रूद-ए-हयात | |
− | + | जू-ए-कम-आब की मानिंद सिमट जाती है | |
− | + | आहटें कौन सी ख़्वाबों में बसी है जाने | |
− | + | आज भी रात गये नींद उचट जाती है | |
− | + | हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी | |
− | + | सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है | |
− | + | </poem> | |
− | हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी | + | |
− | सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है < | + |
12:41, 19 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
सुबह की आस किसी लम्हे जो घट जाती है
ज़िन्दगी सहम के ख़्वाबों से लिपट जाती है
शाम ढलते ही तेरा दर्द चमक उठता है
तीरगी दूर तलक रात की छट जाती है
बर्फ़ सीनों की न पिघले तो यही रूद-ए-हयात
जू-ए-कम-आब की मानिंद सिमट जाती है
आहटें कौन सी ख़्वाबों में बसी है जाने
आज भी रात गये नींद उचट जाती है
हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी
सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है