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बस कि मेहमान सुबह-शाम के हैं / गुलाब खंडेलवाल
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21:02, 1 जुलाई 2011
ख़त सभी दूसरों के नाम के हैं
है ये किस शोख़ की गली,
यारों
यारो
!
लोग चलते कलेजा थाम के हैं
Vibhajhalani
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