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न होंठ तक कभी आई, न मन के द्वार गयी / गुलाब खंडेलवाल
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04:45, 2 जुलाई 2011
पलट के देखा जो तुमने लजीली आँखों से
लगा
की फिरसे
कि फिर से
मुझे ज़िन्दगी पुकार गयी
घिरी घटा मेरी आँखों से होड़ लेती हुई
बड़ी ही शान से आई थी, तार-तार गयी
जहाँ-जहाँ थी,
कसम
क़सम
प्यार की खाई तुमने
वहीं-वहीं पे नज़र मेरी बार-बार गयी
Vibhajhalani
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