गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
इतनी उलझन क्यों आनन पर, मुझको आधा ही मन दे दो / गुलाब खंडेलवाल
1 byte added
,
20:26, 13 जुलाई 2011
दर्पण में प्रतिबिंब सहस्रों कब उसको धुँधला कर पाते!
कोटि नयन के डोरे, शशि की उज्ज्वलता
तिलभर
तिल भर
हर पाते!
विद्युत-सी जग आलोकित कर, धूमिल कभी हुई सुन्दरता!
नयी कोंपलें फूटा करतीं, जब पीले पत्ते झड़ जाते
Vibhajhalani
2,913
edits