मैं आँसू बरसाता जाता, यह मुस्कान लिये बैठी है
इसका दुःख दुख मेरे गीतों में, इसकी जलन हृदय में मेरे
मेरी साँसों में इसकी ही विरहाकुल साँसों के फेरे
यह मेरी चिर -तृषा, अमर अनुभूति, मूक प्राणों की भाषा
मर्म-दीप की शिखा न जिसको छू पाए शलभों के घेरे
चिर -अभिशापों में पलकर भी कुछ वरदान लिये बैठी है
मेरे मन में कोई राधा बेसुध तान लिए बैठी है
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