Changes

काज़िम जरवली

1,380 bytes removed, 10:55, 8 नवम्बर 2011
पन्ने को खाली किया
कभी हमने भी गेहूं की बाली मे महुए पिरोये थे !!!
मेरे गाँव की यादें नशीली !
जूही,
चमेली !
 
वो खट्टे, वो मीठे मेरे दिन,
वो अमिया, वो बेरी !
 
कभी गाँव के कोल्हु पर ताज़े गुड के लिये रोये थे !!
कभी हमने भी........................... महुए पिरोये थे !!!
 
कभी भैंस की पीठ पर,
दूर तालाब पर !
 
धान के हरे खेतो के बीच खोये थे !!
कभी हमने भी.............महुए पिरोये थे !!!
 
कच्ची दहरी के पीछे,
खाई के नीचे !
 
ठंडी रातो मे हम भी पयाल पर सोये थे !!
कभी हमने भी............... महुए पिरोये थे !!!
 
एक दिन हम जो जागे,
गाँव से अपने भागे !
 
सारे सपने ना जाने हमने कहाँ डुबोये थे !!
कभी हमने भी गेहूं की बाली मे महुए पिरोये थे !!!