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जो रातें मिलन की सपन बन गई |
विधै, लाज आयी न तुमको ज़रा
जो थी चूनरी वह कफ़न बन गई |   [२५]पतझर की कहानी को बहार क्या जाने |जीवन की रवानी को मजार क्या जाने |भार डोली का पूछो तो बता देंगे मगर बहारों के दुल्हन की जवानी को कहार क्या जाने | [२६]लहर के बिना क्या कोई तरण पा सका |क्या अँधेरे के बिना कोई किरण पा सका |कंटकों की राह पट तन का फटे बिन फूल का पथ क्या कभी कोई चरण पा सका | [२७]चाह बालक सी मचल जाती है |सांस चांदी है पिघल जाती है | बहारों के जुड़े न संवारो तो किसका कसूर उम्र आंधी है निकल जाती है | [२८]बेबसी का परिचय किनारे से पूछ |दूरियों की कहानी सितारों से पूछ |गीता ओ' क़ुरान में खोजना बेकार है दोस्त जिन्दगी क्या है किसी गम के मरे से पूछ | [२९]दीप क्या कहता कभी की जलने का मूड नहीं है |चाँद क्या कहता कभी की ढलने का मूड नहीं है |आदमी दे रहा धोखा मूड के नाम पर जिन्दगी को पर कौन कहता मौत से की चलने का मूड नहीं है | [३०]पूनम के घावों में तुमको पाकर आज दवाई रख दूँ |पलकों के पथ में गीतों की लाकर आज कमी रख दूँ |आने वाला शहर कहर हो केवल इस कारण से शायदजी करता सूने होठों पर गाकर आज रुबाई लिख दूँ |
<poem>
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