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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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कितनी अतृप्ति है...
पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में ?
कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।
</poem>
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