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“पर एहर हा गांव नियम ए, टोरे के अधिकार मं रोकपर कानून ला तंय टोरे हस, यने करे हस तंय अपराध।”“अच्छा ग्राम के नियम बताएस वाह रे धनवा भैय्या।होय तोर यश-प्रमुख बनस तंय-बाढ़य स्वार्थ खजाना।लेकिन ओहर ग्राम नियम नइ, ग्राम नियम ला एतन जानसबला मिलय लाभ बाढ़य यश, होय गांव के उचित विकास।ग्राम नियम पर सदा चले हंव, संस्कृति के करे हंव सम्मानसंहड़ादेव ला तंय जानत हस, हुड़बुड़हा पथरा भर आय।यदि ओकर पर मुड़ ला पटकत, मुड़ फुट के बन जाहय घावमगर गांव के संस्कृति ए तब, पूजा कर मंय करेंव प्रणाम।”“तंय रख तर्क होत हस विजयी, पर वास्तव मं गल्ती तोरमोर सदा हिनमान करे हस, काम के बीच बने हस आड़।”“तंय हा अइसन किसम के वन अस, जिहांं बिछे हे शिला विशाललेकिन हवय हहर हेल्ला अस, एको ठक नइ हरियर पेड़।तइसे तंय हस धनी प्रतिष्ठित, लेकिन शालीनता के अभावबात बात मं लांछन डारत, दूसर ला करथस बदनाम।”“छोटे मनसे- बात बड़े कर, झन गरमा मोर मथे दिमागइहां तोर आवश्यकता नइ, तुरुत हटा थोथना-चल भाग।”तुरुत गरीबा उत्तर देतिस, इही बीच बइला हा अैसचांटिस खूब गरीबा ला अउ, मुड़ ला घंसरिस ओकर देह।कथय गरीबा हा धनवा ला – “टकटक देख ए पशु के कामलड़ई विवाद ला रोक लगावत, उग्र दिमाग ला कर दिस शांत।एहर कहत- तिहार ला मानो, पशु पक्षी कीरा इंसानसदभावना रखव आपुस मं, भेद जाय गोरसी के आग।पर तंय मोला भगय कहत हस, तब एकर बर झन कर फिक्रतोर ले पहिली इहां आय हंव, तब मंय लहुटत तोर ले पूर्व।”अपन मकान गरीबा लहुटिस, साफ करिस कृषि कर्म के अस्त्रएक जगह मं रेती डारिस, तंहने पुरिस पिसान के चौंक।उही पवित्र जगह पर रख दिस, नांगर जुंड़ा कुदारी तीनसाबर हंसिया रापा गैंती, उंकर करत हे पूजा पाठ।बिनती बिनो तियार गरीबा, जंगी पहुंच के खावत मांस-“कका, बना गेंड़ी मंय चढ़िहंव, स्वयं लगा डोरी अउ बांस।कुछ लाने बर मोला कहिबे, पर मंय हा बिल्कुल असमर्थदया मया कर तिंहिच पुरो सब, काबर के मंय तोर भतीज।”सुनिस गरीबा तंह मुसकावत, हेरिस बांस मोठ अस छांटआरी मं दू डांड़ तुरुत चुन, खिला धरा दिस लगा उवाट।खीला पर घोड़ी पर पाऊ, नरियर बूच रज्जु दिस बांधओमां माटीतेल रुतोइस, आग मं सेंकिस कुछ क्षण बाद।बनगे तंह जंगी चढ़ रुचरुच मचत बिकट के गेंड़ी।ओहिले भागत मार कदम्मा उठा थोरकिन एंड़ी।रंगी रज्जू गुन्जा मोंगा- सब के संग मं गिजरत खोरआगू होय चलत स्पर्धा, जउन प्रथम ते बनत सजोर।रंगी बेलबेलहा गेंड़ी ला, गज्जू पर अंड़ात टप ताकगज्जू गेंड़ी मचत तेन हा, चिखला मं गिर गीस दनाक।गुन्जा-मोंगा टुरी मन हांसत, गेंड़ी मं भागिन कुछ दूरगज्जू कपड़ा झर्रावत उठ, जम्हड़ धरे बर पीसत दांत।पर रंगी हा पकड़ाइस नइ, खुद ला साफ बचा रख लीसइसने लड़-मिल लइका मनहा, मानत सुघर हरेली पर्व।इही बखत मंगतू मन निकलिन, पकड़े दसमुर-लीम डंगाललइका करथंय झींका पुदगा, उंकर काम मं पारत बेंग।मंगतू कथय- “डाल झन झटकव, मोर प्रश्न के उत्तर देवमंय खुद तुमला डाली देहंव, ओकर साथ मया चुचकार।पेड़ ले हमला लाभ का हावय, ओहर देत कतिक ठक सीखअगर जगत हा पेड़ ले खाली, तब ओकर बिन का परिणाम?”रंगी कथय- “शुद्ध पुरवाही, बीज फूल फल कठवा देतपेड़ के ऊपर खेल करत हम, ओकर बिन जीवन हा शून्य।”“यद्यपि तुम्मन बेलबेलहा हव, मगर रखत हव बुद्धि कुशाग्रप्रश्न के उत्तर सही रखे हव, अमर लेव मनचही इनाम।”मंगतू हा डंगाल बांटिस तंह, लइका मन खिल गिन जस फूलचरवाहा मन सब घर जावत, उंकर इहां खोचत हें डार।मगर गरीबा के घर तिर गिन, उंकर ठोठक गे रेंगत पांवकथय गरीबा -“कार रुकत हव, तुम सीधा मोर घर मं आव।बेंस ला हरदम खोल के रखथंव, स्वागत पावत हर इंसानतुम्हर पास हे हरियर डारा, मोर दुवारी मं झप खोंच।”मंगतू कथय- “का बतावन भई, हम नइ आन सकन घर तोरअब डाली तक खोंचई हे मुश्किल, याने सब तन ले असमर्थ।”“तुम्मन अचरज मं डारत हव, तुम्हर साथ मं नित सदभावसदा लड़ई झगरा ले दुरिहा, एक जिनिस ला खांयेन बांट।तंय दैहान मं खुद बलाय अउ देस प्रसाद के बांटा।मगर शत्रुता कहां ले आइस – आये बर हे नाही।“तंय हा धनवा संग झगड़े हस, ओकर होय गजब हिनमानउही हा हमला छेंक लगा दिस, तब नइ आवत हन घर तोर।”“तुम बोलत तब मंय मानत हंव, मंय हंव खूब लड़ंका बंडधनवा के तोलगी झींके हंव, ओकर होय नमूसी आज।मगर तुम्हर संग सदा मित्रता, अभिन बलावत करके मानआये बर हे ढेकाचाली, एकर कारण ला कहि साफ?”“यदि हम तोरे घर मं जाबो, धनवा हा लेहय प्रतिशोधपशु के चरई बंद कर देहय, तुरुत बंद बरवाही के दूध।चरवाही हा मिलन पाय नइ, हमर सबो बल ले नुकसानधनवा के अभि राज चलत हे, तब हम चलबो ओकर मान।”
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